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मिल ही न सकी सम्ते-सफ़र ढूंढे से / रमेश तन्हा

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मिल ही न सकी सम्ते-सफ़र ढूंढे से
चलते भी रहे, कहीं न लेकिन पहुंचे
मंज़िल कहां बार बार उभरे डूबे
हम थे कि सदा बहरे-तजस्सुस में रहे।