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मिस्टर के की दुनिया: पेड़ और बम-५ / गिरिराज किराडू
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उसे रोज याद दिलाने पड़ते हैं
कवि के कर्तव्य
कवि भाषा में नहीं
उसकी शर्म में रहता है