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मिस एफ.डी.आई. मेरी जान... / विमल कुमार

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 शेरशाह सूरी के पुराने जर्जर किले से बोल रहा हूँ
मिस एफ.डी.आइ. मेरी जान...
वैसे ही तुम्हें पुकार रहा हूँ
जैसे कोई डूबता हुआ आदमी पुकारता है किसी को
मेरी जान बचा लो, मेरी जान एफ.डी.आई.
देखो, मैं किस तरह पैंसठ सालों से डूब रहा हूँ
एक परचम लिए हवा में
इस जहाज में हो गए हैं कितने छेद
तुम्हें पता है
अब कोई नहीं बचा सकता इसे
सिर्फ तुम्हारे सिवाय
आज की रात आजा ओ मेरी बाँहों में
कर लो अपनी साँसें गर्म
बिस्तर उतप्त

मेरी जान एफ.डी.आई.
कितने सालों से कर रहा हूँ बेसब्री से तुम्हारा इंतजार
तुम आओगी तो बदल दोगी
मेरे घर का नक्शा
तुम आओगी तो खिल जाएँगे फूल मेरे गुलशन में
तुम आओगी तो चहकने लगेगी चिड़िया
एफ.डी.आई. मेरी जान...

तुम्हारे आने से
गंगा नहीं रहेगी मैली
वह साफ हो जाएगी
हो जाएगी उज्ज्वल
रुक जाएँगी आत्महत्याएँ,
मजबूत हो जाएँगी आधारभूत सरचनाएँ
आ जाओ, अभी आ जाओ एकदम
उड़ती हुई हवा में
खुशबू की तरह

चली आ जाओ मेरी जान...
कितने रातों से बदल रहा हूँ करवटें
ठीक कर रहा हूँ चादर की सलवटें
तुम्हारे लिए
कितने कागजों पर लिखा है तुम्हारा नाम
कितने खत लिखे हैं मैंने तुम्हे अब तक
कितने किए ई मेल
एस.एम.एस.
फेसबुक पर भी छोड़ा है तुम्हारे लिए संदेश
अब और न तड़पाओ मेरी जान
मंदिरवाले भी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तो बुला रहे हैं तुम्हें
निमंत्रण कार्ड भेज कर
कुछ समाजवादी भी साधे हुए हैं रहस्यमय चुप्पी
सामाजिक न्याय के झंडाबरदार की खामोशी का अर्थ नहीं छिपा किसी से
आ जाओ, मेरी जान
तुम आओगी तो हमारे चेहरे पर भी
आ जाएगी मुस्कान
कुछ उम्मीद जागेगी
इस जीवन में
एफ.डी.आई मेरी जान...

शेरशाह सूरी के पुराने किले से
पुकार रहा हूँ तुम्हें
कभी इसी किले के बुर्ज से
पुकारा था
संजय ने
अंधायुग के नाटक में
लौट आया है वह युग फिर से

मेरी जान...
इसलिए मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें
क्योंकि अब मेरे जीवन का
परम सत्य तुम्हीं हो
अब तक मैंने भूल की
नहीं पहचानी
मैंने तुम्हारी अहमियत
कौन हो सकता है
तुमसे अधिक रूपवान
इस दुनिया में
आज की तारीख में
कौन हो सकता
तुमसे अधिक जवान
चली आओ

एफ.डी.आई. मेरी जान...
तुम आओगी
तभी आएगी
दूसरी आजादी
पहले जो आई थी
वह तो रही व्यर्थ,
अब नही रहा उसका अर्थ
नहीं थी वह तुमसे अधिक खूबसूरत
इसलिए मैं शेरशाह सूरी के पुराने किले से
पुकार रहा हूँ
तुम्हें

चली आओ मेरी जान...
जिस तरह पुकारा था
अल्काजी ने कभी
धृतराष्ट्र...!
चली आओ,

एफ.डी.आई. मेरी जान...
मेरी साँसें उखड़ रही हैं
तुम नहीं आओगी
तो मैं अब जिंदा नहीं रह पाऊँगा
घबराओ नहीं
यहाँ होती रहेगी हड़ताल
पर तुम चली आओ

मेरी जान...
उठानेवाले तो हर युग में
उठाते रहते हैं सवाल
पर तुम चली आओ
इसी इसी वक्त,
यहाँ मचा हुआ है कितना हाहाकार
मैं कर रहा हूँ
तुम्हारा
एक पागल प्रेमी की तरह
इंतजार...
मिस एफ.डी.आई. मेरी जान...