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मि वे मुल्क कु छौं जख डांडी कांठी बच्यादं / संदीप रावत

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मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी काँठी बच्यान्द
हवा गीत लगान्द अर डाळी साज बजान्द।

मुण्ड मा हिमालै कु मुकुट सज्यूं पैतळ्यूं हरि -हरद्वार
बनी- बनी की छन जैड़ी -बूटी, बनी -बनी फूल-फुल्यार
सडक्यूं का उंचा-निसा घूम पुंगडी पठाली भली सुहान्द
मी वे मुलक$ कु छौऊँ जख डांडी -काँठी बच्यान्द।

द्वादश ज्योतिर्लिंग मा केदार , जख भू बैकुंठ धाम
ऋषि मुनि द्यो- द्यबतौं की धरती जै देव भूमि बोलदान
गंगा जमुना कु मैत जख ,ज्योत अखंड जगी रान्द
मी वे मुल्कू कु छोऊँ जख डांडी- काँठी बच्यान्द।

हिंसोळा किनगोड़ा,तिमला,काफळ करहिंस्वाळी कि मिठास
छ्युतम्यळि,आडू,-अखोड़, सीमळा कु कनु भलु चलमुळु स्वाद
बारा बनी की रस्याळ सक्या मनख्यूं की बढान्द
मी वे मुल्कू कु छौंऊँ जख डांडी काँठी बच्यान्द।

लगदा मंडाण, नचदन पण्डौं झमकदो झुमैलो झुमान्द
भला -भला गीतों का.झमकों मा मनखी खैरी अपणी भुलान्द
कफू, हिलांस का सुर सुणेंदा घुर -घुर घुघुती घुरान्द
मी वे मुल्क$ कु छौंऊँ जख डांडी -काँठी बच्यान्द।

मन कुंगळा मनख्यों का अर क्वांसो छन पराण
सेवा -सौंळी न्यूत- ब्यूतं की रीत मा जख रस्याण
मिठ्ठी -मयळदी बोली -भाषा जिकुड़्यूं छ्पछ्पी लान्द
मी वे मुल्क$ कु छौंऊँ जख डांडी- काँठी बच्यान्द।