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मीटर का रहस्यवाद (पैरोडी) / बेढब बनारसी

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पांडे बूझि भरो तुम पानी
तुमको खबर नहीं का पांडे 'मीटर' अब बैठानी .

टिकस बढ़ावन की बिरिया तो खूब कीन मनमानी,
पानी देत मनुसपलिटी को याद आवत है नानी.

अहिरा रोवै खड़ा दुआरे कैसे सानौं सानी,
कूँआ झांकें लोग-लुगाई सारी कला भुलानी.

समुझावत हैं बाबू बैठे जलदी जैहे पानी,
कैसे रोज रगडिहों साबुन मेरे हिय की रानी.

शौचालय में कठिनाई से मिलिहैं संतों पानी,
'टायलेट-पेपर' बेगि मंगाओ करौ न आनाकानी

पानी बिना नहीं घट बोलै, सबद न एकौ आनी,
कहैं कबीर सुनो हो साधो, यह पद है निरवानी

(कबीरदास जी की तरह)