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मीठा जल बरसानेवाले / पुरुषार्थवती देवी
Kavita Kosh से
नील वर्ण की चादर डाले घुमड़-घुमड़कर आनेवाले।
नगर, गाँव, गिरि-गह्वर, कानन निज सन्देश सुनानेवाले॥
तूने देखा सभी ज़माना, पहला गौरव भी था जाना।
वर्तमान तूने पहचाना, लुटा चुके हम सभी ख़जाना॥
दिन खोटे आये जब अपने, सुखद दिनों के लेते सपने।
साहस बल सब कुछ खोकर हम स्वार्थ-माल ले बैठे जपने॥
ऐसा अमृत-जल बरसा दे, तप्त दिलों की प्यास बुझा दे।
वीरों का संदेश सुना दे, हमको निज कर्तव्य सुझा दे॥
हे स्वच्छन्द विचरनेवाले, हे स्वातन्त्र्य-सुधा-रसवाले।
हमको भी स्वाधीन बना दे, मीठा जल बरसानेवाले॥