भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मीठी ईद / शुभा
Kavita Kosh से
जहाँ मैं रहती हूँ
सिवैयाँ बहुत दूर की चीज़ हैं
स्मृति में ही वे नसीब होती हैं कभी
मीठी ईद की तरह
क़साब भी इसी तरह आ बैठा स्मृति में
ईद पर रूठ कर भाग आया था घर से
मैं चाहती थी उसके साथ सिवैयाँ खाना
और ईद पर नए कपड़ों के बारे में बात करना ख़ासकर
नई जीन्स के बारे में
ये नसीब नहीं हुआ
आगे का हाल आप जानते हैं।