भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीठी बोली / बालकृष्ण गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौआ बोला –‘कोयल बहिना।
इतनी मीठी बोली
कहो, कहाँ से सीखी तुमने,
‘सैकरीन’ ज्यों घोली ?’
कोयल बोली –‘भैया। होती है
मिठास जो मन में।,
वही निकलकर आती बाहर –
बोली में,जीवन में।’
      [रचना: 16 सितंबर 1996]