भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीठे बोलन कों सदाचार समझ लेवें हैं / नवीन सी. चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मीठे बोलन कों सदाचार समझ लेवें हैं ।
लोग टीलेन कों कुहसार समझ लेवें हैं ॥

दूर अम्बर में कोऊ आँख लहू रोवै है।
हम यहाँवा’इ चमत्कार समझ लेवें हैं ॥

कोऊ बप्पार सों भेजै है बिचारन की फौज।
हम यहाँ खुद कों कलाकार समझ लेवें हैं ॥

पैलें हर बात पे लड्बौ ही सूझतौ हो हमें।
अब तौ बस रार कौ इसरार समझ लेवें हैं ॥

भूल कें हू कबू पैंजनिया कों पाजेब न बोल।
सब की झनकार कों फनकार समझ लेवें हैं ॥

एक हू मौकौ गँबायौ न जखम दैबे कौ।
आउ अब संग में उपचार समझ लेवें हैं ॥

अपनी बातन कौ बतंगड़ न बनाऔ भैया।
सार इक पल में समझदार समझ लेवें हैं ॥