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मीत अब वो ही पुराने ढूँढते हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
मीत अब वो ही पुराने ढूँढते हैं
लोग जीने के बहाने ढूँढते हैं
थे सजे जो आँख में काजल सरीखे
ख़्वाब फिर वे ही सुहाने ढूँढते हैं
वक्त हर लम्हा बदलता करवटें है
लोग यादों के तराने ढूँढते हैं
तन ढँके सब का रहे भूखा न कोई
शीश पर सब आशियाने ढूँढते हैं
यों अटकते आँख में मंज़र कई पर
हम वही गुजरे जमाने ढूँढते हैं
खेत में है जानवर जिन के न कोई
किसलिये फिर वे मचानें ढूँढते हैं
दर्द से रिश्ता निभाना आ गया अब
अश्क़ भी दिल आशिकाने ढूँढते हैं