भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीत तुम्हीं हो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज वही है
ठौर पुराना
पर कोई न साथ पुराने
आँसू सूखे
सुख दुःख मुकरे
साथ बचे कुछ
चुभते ताने।
जो भी बीता
अच्छा बीता
खुशियों का
फूटा घट रीता
कोई माने या ना माने
छूट गए जाने पहचाने
घर दर रूठा
सब कुछ टूटा
पर मैं अब तक
देखो हूँ ज़िंदा
अपने जीवन से शर्मिंदा
पाप किए बिन
में हूँ पापी
जन्म जन्म का
मैं संतापी
माना दुःख हैं बहुत घनेरे
धोखे खाएँ हैं बहुतेरे
दर से सारे गीत गाए हैं
एक बची नयनों में आशा
मेरे सुख दुख की परिभाषा
मेरे प्राण हो गीत तुम्हीं हो
जीवन का संगीत तुम्हीं हो

  • मेरे मन के मीत तुम्हीं हो*