भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीत से निहोरा / रामवचन शास्त्री अंजोर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जटहा बरवा तरवा घरवा, एकदिन अइतऽ मीतवा॥
घर-पछियारी कमल से छपरल बाटे एक तलइया,
पंजरे उत्तर धन बँसवारी, गज्झिनवा अमरइया।
पुरुवारी मंदिर में टेरत बंसी किसुन कन्हइया॥
दखिने पसरल बा पहरबा, एक दिन अइतऽ मीतवा॥
चक उरेहल धजा बसंती असमाने फहराले,
साँझ-सबेरे बजे संख-डफ, घरी-घंट घहराले।
एवल-खल के फूलन से बिहँसति फुलवारी लहराले॥
झूमे तितली आ भँवरवा, एक दिन अइतऽ मीतवा॥
पगुरी मधले अहरी पर बरधा-लोचर-धेनुगइया,
भकभकात ढिबरी ताखा पर होखी धइल मडइया।
बहरी बसहठ पर बइसल होइहें बुढऊ घरवइया॥
जे बा कुल के पतवरवा, एकदिन अइतऽ मीतवा॥
धप्-धप् पीयर बनल अखाढ़ा मंदिर का अगवारे,
जेर कंरसु दस-दस जवान होत भोर-भिनसारे।
नल उठावसु मुुगदर भांँजसु जय बजरंग उचारे॥
माजँऽ मटिया से जंगरवा, एक दिन अइतऽ मीतवा॥
चाय-समोसा-बिसकुट भुलिया, उहवाँ दाना-चिउरा,
ढूंढ़ा-ढूंढ़ी, मेथी-भेली, लैनू मिली सोंठउरा।
मनसायन अतना लागी जे आइल होननि अउरा॥
मिलिहैं दुधवा भरी कटोरवा, एकदिन अइतऽ मीतवा॥
बासमती, संजीरा सुनली ‘देखली‘ ना मनसुरिया,
टंड़ ऊसर, बाँगर, बन्जर, बलुआही मिललि बधरिया।
सेरहा, साठी कोदो, मंडुआ, मकई-बूट-बजरवा,
उपजे कविली जौ-बजरवा, एक दिन अइतऽमीतवा॥
घीव में गोंतल लिट्ठी, गार्हे दाल सजावे दहिया,
छनगर राबि पसर भर ओमें डालि खियाइब तहिया॥
ललसा लागल बा हमार पुरबइबऽ आके कहिया॥
पापड़ ना भेंटी अँचरवा, एक दिन अइतऽ मीतवा,
पतई-पुअरा मिली बिछावन, ओढ़ना करिया कमरा,
भोंकत रही रात-भर झबरा भितरा कबहुं बहरा।
अन्नस तनी बुझाई बाकी ओकर चउकस पहरा॥
धधकल कउड़ा में गोहरवा, एक दिन अइतऽ मीतवा॥
ऊसठ-बोल-बचन मनइन के तापर हियरा निरछल॥
तन से रुख, फटहा बहतर, मन माखन-अरु निरमल॥
चेहरा पर अजबे मस्ती बा, भलही सबही निरधन,
धनि-धनि हो जाइत ‘अंजोरबा‘ एकदिन अइतऽ मीतवा॥