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मीना की ग्रीवा से झर झर / सुमित्रानंदन पंत

मीना की ग्रीवा से झरझर
गाती हो मदिरा स्वर्णिम स्वर,
गान निरत उर, वाद्य रव मधुर,
नूपुर ध्वनि हरती हो अंतर!
हाला के रँग में तन मन लय,
मुग्धा बाला हो सँग सहृदय!
फिर सुरपुर सम हो जग निरुपम,
विधि से क्षमतावान बने नर!