भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीलों चलना है! / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप में तपते हुए बर्फ सा पिघलना है,
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है I

लहरों में बह जाऊँ; तिनका नहीं,
नयनो में रह जाऊँ; सपना नहीं I
मैं बीज- धरा के गर्भ में संघर्षण,
ताप-दाब सह होगा मेरा अंकुरण I
 
पहाड़ी-सीना चीर; वट सा पलना है,
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है I

कंटक या पुष्प करें आलिंगन,
नित जीवन करता अभिनन्दन I
कितना भी कर डालो उन्मूलन,
दूब जड़ों सी हठ है; प्रति क्षण I

पथरीली भूमि पर सरककर फैलना है,
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है I
 
जीवन राग सुनाती; हरीतिमा में ढली,
नन्ही कोंपले दूब की संघर्षो में पली I
शुभ होती, यही हर पूजन में चढ़ती,
जीवनदायी नैनों को, निशिदिन बढ़ती I

सतपथ पर ठोकर, प्रतिपल सँभलना है,
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है I