मीलों तलक रेत की बाहें
मीलों तलक, सुलगती धरती
इन दोनों की तपन देखकर
आज लहर होने का मन ।
इच्छाओं ने जब भी चाहा
छू लें नभ के चाँद-सितारे,
पर हाथों की रेखाओं ने
सपने कर डाले बनजारे,
मीलों तलक नागफनियाँ हैं
मीलों तलक बबूली छाया
इन दोनों की चुभन देखकर
आज सुमन होने का मन ।
नीड़ बनाने की कोशिश में
तिनका-तिनका होकर बिखरे,
हीरों जड़ा गगन जब देखा
सागर के तल तक हम उतरे,
मीलों तलक धुन्ध का पहरा
मीलों तलक अन्धेरी घाटी,
इन दोनों की घुटन देखकर
आज किरण होने का मन ।
लहरों को आँचल में बाँधे
सागर से बून्दों तक आए,
इन्द्रधनुष जब छूना चाहा
अंगारों से जा टकराए,
मीलों तलक महकती चम्पा
मीलों तलक गन्ध कस्तूरी,
मीलों फैला विजन देखकर
आज हिरन होने का मन ।