भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुँहासे / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गेंदे के कुछ फूल खिले हैं
गुलाबों की क्यारियों में

उनकी अवांछित नागरिकता पर
गुलाब उठाते हैं सवाल –
“तुम यहाँ क्यों ?”

ढीठ हैं फूल गेंदे के
सिर उठाकर देते हैं जवाब –
“वसंत से पूछो!!”