भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुँह-अँधेरे / भारत यायावर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुँह-अन्धेरे उठ गया हूँ

घूम आया हूँ

दरख़्तों के तले होता


मुँह-अन्धेरे पक्षियों के बोल

जैसे गुनगुनी-सी धूप में

सोता पहाड़ी से उतरता हो

मुँह-अन्धेरे वायु बहती है

हमारे प्राण में भरती हुई चन्दन


मुँह-अन्धेरे जग गई है माँ

झाड़ हाथ में लेकर

किया है

पूरे घर को साफ़


मुँह-अन्धेरे बैलों ने जगकर

बजाई घण्टियाँ अपनी

गया उठ उनका वह साथी गनेसवा

वह चराने ले गया उनको कहीं मैदान


मुँह-अन्धेरे मैंने सोचा है

करूंगा नीम की दातून

बस उगते ही सूरज के


मुँह-अन्धेरे मुँह दिखाई दे रहा है मेरा

मुँह-अन्धेरे मुँह दिखाई दे रहा सारे ज़माने का