मुँह में दाँत, घर में भूचाल, जगत में मेला / अनूप सेठी
उनका बड़ा बेटा चमचमाती ताजगी के लिए
टुथपेस्ट लाया
मंझले ने छुप के अँगुली पे लगाया
घिसने के लिए उकड़ूँ बैठा ही था
छोटे ने शोर मचा दिया चोर-चोर
बड़ा तैयार हो चुका था। कुर्सी के हत्थे पर पैर रखे
तस्मा बाँधते हुए उसने ऐलान कर दिया
पेस्ट रखा है खिड़की पर। इस्तेमाल करने से पहले
हर कोई आइने में देखे अपने दाँत
मसरूफ सुबह थी। भूचाल आ गया। सब सन्न रह गए।
बड़ा ठक ठक करता बाहर निकल गया।
दाँतों के अँदर डोलने लगीं सबकी जुबानें
बाप ने आँखें मिचमिचाईं आदतन दाँतों को छुआ जीभ से
और याद किया
सूप की तरह फैले हैं उसके दाँत खुले खुले
और उसकी सँतानों के भी।
छोटे से सहन नहीं हुई चुप्पी। ठोकर मार दुनिया
उड़ा देने वाले अँदाज में बोला
किसी के काम का नहीं है टुथपेस्ट।
जो मलेगा, दाँत नहीं अँतड़ियाँ सफा हो जाएँगी
तीनों लड़कियों की भी खुल गई जुबान
चिचियाने लगीं। हाँ-हाँ, फेंक दो फेंक दो
दांतों को मारो गोली आंतें बचाओ
फिर बीच वाली जो सिलाई सीखती थी
उदास हो गई आखिर सबके छाज जैसे
क्यों बिखर गए दाँत
इतनी बड़ी बड़ी गलियाँ हैं
मां के तो मसूड़े तक चमकते हैं
मँझले ने मौका पाकर फेर ली अँगुलियाँ
और चटखारे लिए
छोटे की ठोकर से दुनिया का कुछ बिगड़ा नहीं था
कुछ कुछ दार्शनिक अँदाज में पूछ बैठा
पर अब्बा आपके हमारे सबके क्यों नहीं हुए बड़े जैसे दाँत।
भूचाल के बाद जैसे बच जाएँ बेघरबार लोग
मलवा हटाते हुए। कुछ उसी तरह बोला बाप
बड़े को दिए अल्लाह ताला ने। बाकी सबको
मैंने और तुम्हारी अम्मी ने बाँट दिए दाँत
बड़ी जो सिलाई सीख चुकी थी, पूछने लगी
आपने क्यों दिए। न देते तो देता खुद अल्लाह ताला
पर बैटी उसने कहा था लगवा लो हाथ पैर या
सजवा लो दांत
हमने सोच समझ कर ही तुम सबको लगवाए हाथ पैर
और आपस में बाँट लिए दाँत
सबसे छोटी को गुस्सा आ गया
जैसे राहत का ऐलान हो जाए और बँट जाए ऊपर ऊपर ही
बड़े को कैसे मिल गए हाथ भी पैर भी और दांत भी
बाप ने टोका,सरकारी नुक्ता जैसे निकल आया
नहीं, उसको नहीं मिली थीं अंतड़ियां
इस बार मँझले ने बाप को टोक दिया जिरह के अँदाज में
यह कैसे, वो तो खाता है हम सबसे ज्यादा
बेटे वो इसलिए कि एक आँत दी उसको मैंने
और दूसरी दी तुम्हारी अम्मी ने
छोटी रुआँसी हो गई
पर आंत तो हमारे अँदर भी है। फिर भी नहीं खा सकतीं
हम चाकलेट, आइसक्रीम, मालपुए
हमें भी लगवाकर दो दाँत
अपने ही उखाड़ कर लगवा दो
और वो रो पड़ी
जैसे भूचाल के बाद बारिश, जैसे टूटे हारे थके
आदमी का अकेलेपन का कवच।
भूचाल के दूसरे झटके की तरह छोटा बोला
रोटी नी खाई जाती एक। लगवाने चली है अब्बा के दाँत
कवच में ढकी थी बोल गई छोटी
खाई क्यों नी जाती। पूछ देती है क्या अम्मी
एक भी कौर एक रोटी के बाद।
धरती डोल गई। माँ रोए जाती थी बेआवाज
जैसे वीडियो शूटिंग होने लग गई इस आपदा की
बाकायदा लिखी गई दृश्य कथा के साथ
अब्बा के दाँतों से अलबत्ता निकली हवा अकस्मात
कुछ देर तक दृश्य स्थिर रहा
नाटक में अचानक फ्रीज
वीडियो में धूसर रंगों वाला स्टिल शॉट। नाटकीय अंदाज में
फिर धीरे धीरे बाप ने दँत छज्जे के आसपास की
मांसपेशियों को ढीला किया
नाभि तक से जोर लगाया जबरन मुस्कुराया
सरकारी इमदाद की तरह
चलो इस बार मेले में पहले सबको लगवाएंगे दांत
फिर खाएंगे चाकलेट, आइसक्रीम, मालपुए
बीसवीं सदी के आखिरी सालों में देशों, समाजों, परिवारों
जिस्मों की गैरगराबरी का मामला था
मेले में जाकर थोक में दाँत लगवाने का वादा था
बाप ले गया जिंदगी भर की भौतिक अधिभौतिक कमाई साथ
प्राविडेंट फँड समेत
एक सिरे से शुरू हुआ दँतसाजों का बाजार
जा खुला आँतसाजों के बाजार में
हर किसी ने चुन लिए अपनी पसँद के दाँत
इँसान के, चूहे के, हाथी के, जिस किसी का नाम लो उसी के।
दँत मँजन टुथपेस्ट मुफ्त।
चमचमाती लिसलिसी फिसलती आँतों की रस्सियां भी
बाँध लीं किसी ने कमर कसने की तरह शूरवीरों जैसी
किसी ने लपेट लीं जहरीले नागों सी
शिवजी भी भौंचक्क।
फिर आई बारी चाकलेटों,आइसक्रीमों और मालपुओं की
हालांकि इनके पेटेंट लूटे ज चुके थे
पर चीजें उपलब्ध थीं बाजारों में
जिनने लगवा लिए हों दाँत लपेट ली हो अँतड़ियाँ
उनको क्या परवाह
वे तो खा जाएँ धरा धाम
इस तरह दाँतों वाले चाचा के टब्बर ने
भूचाल का असर कम करने को मेले से लौटने के बाद
सामूहिक डकार लिए और सुख से रहने लगे।
(1992-96)