मुँह / हरिऔध
हो गयी बन्द बोलती अब तो।
तू बहुत क्या बहक बहक बोला।
तू भली बात के लिए न खुला।
मुँह तुझे आज मौत ने खोला।
हैं बहुत से अडोल ऐसे भी।
जो कि बिजली गिरे नहीं डोले।
'जी' गये भी नहीें खुला जो मुँह।
मौत कैसे भला उसे खोले।
बोल सकते हो अगर तो बोल लो।
तुम बड़ी प्यारी रसीली बोलियाँ।
दिल किसी का चूर करते मत रहो।
मुँह चला कर गालियों की गोलियाँ।
जो कभी कुछ न सीख सकते हो।
दो भली सीख सब उन्हें सिखला।
मात कर के न बात को मुँह तुम।
दो करामात बात की दिखला।
जो किसी को कभी नहीं भाती।
है उसी की तुझे लगन न्यारी।
क्यों लगी आग तो न मुँह तुझ में।
बात लगती अगर लगी प्यारी।
प्यास से सूख क्यों न जावे वह।
पर सकेगा न रस टपक पाने।
मुँह बिचारा भला करे क्या ले।
दाँत ऐसे अनार के दाने।
मुँह पसीने से पसीजा जब किया।
तब अगर आँसू बहा तो क्या बहा।
सूखता ही मुँह रहा जब प्यास से।
आँख से तब रस बरसता क्या रहा।
जीभ तो बेतरह रहे चलती।
चटकना गाल को पड़े खाना।
मुँह अजब चाल यह तुम्हारी है।
कूर बच जाय औ पिसे दाना।
मत सितम आँख मूँद कर ढाओ।
तुम बदी से करोड़ बार डरो।
जो गये वार वार मुँह उन पर।
भौंह तलवार की न वार करो।
तीर सी आँखें, भवें तलवार सी।
और रख कर पास फाँसी सी हँसी।
डाल फंदे सी लटों के फंद में।
मुँह बढ़ा दो मत किसी की बेबसी।
मुँह बड़े ही भयावने तुम हो।
बन सके हो भले न तो भोले।
चैन जो था बचा बचाया वह।
बच न पाया चले बचन गोले।
जो बुरे आठों पहर घेरे रहे।
तो भली आँखें न क्यों पीछे हटें।
मुँह बुरा है जो भले तुम को लगे।
बाल बेसुलझे हुए, उलझी लटें।
पड़ गई है बान जटन की जिन्हें।
वे भला कैसे न भोले को जटें।
मुँह किसी ने सौंप क्यों तुम को दिया।
साँप जैसे बाल साँपिनि सी लटें।
मुँह तुम्हें जो रुचा चटोरापन।
जीव कैसे न तब भला कटते।
तुम रहे जब हराम का खाते।
तब रहे राम राम क्या रटते।
मुँह कहाँ तब रहा ढँगीलापन।
जब कि बेढंग तुम रहे खुलते।
जब गया अब गालियाँ बक बक।
तब रहे क्या गुलाब से धुलते।
बात कड़वी निकल पड़ेगी ही।
क्यों न उस में सदा अमी घोलूँ।
राल टपके बिना नहीं रहती।
क्यों न मुँह को गुलाब से धो लूँ।
मुँह! चढ़ा नाक भौंह साथी से।
पूच से नेह गाँठ तूठा तू।
जो बनी झूठ की रही रुचि तो।
जूठ से झूठमूठ रूठा तू।
और पर क्या विपत्ति ढाओगे।
मुँह तुम्हारी बिपत्ति तो हट ले।
वह डसे या डसे न औरों को।
डस तुम्हीं को न नागिनी लट ले।
दाँत जैसे कड़े, नरम लब से।
हैं सदा साथ साथ रह पाते।
मुँह तुम्हारे निबाहने ही से।
हैं भले औ बुरे निबह जाते।
बात जिस की बड़ी अनूठी सुन।
दिल भला कौन से रहे न खिले।
है बड़ी चूक जो उसी मुँह को।
चुगलियाँ गालियाँ चबाव मिले।
मत उठा आसमान सिर पर ले।
मत भवें तान तान कर सर तू।
ढा सितम रह सके न दस मुँह से।
मुँह उतारू न हो सितम पर तू।
क्या बड़ाई काकुलों की हम करें।
जब रहीं आँखें सदा उन में फँसी।
क्यों न उस मुँह को सराहें पा जिसे।
जीभ है बत्तीस दाँतों में बसी।
छेद डाला न जब छिछोरों को।
जब बुरे जी न बेधा बेधा दिये।
भौंह औ आँख के बहाने तब।
मुँह रहे क्या कमान बान लिये।