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मुंशी प्रेमचंद को याद करते हुए (दोहे) / जय चक्रवर्ती
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युग बदले, बदले नहीं होरी के हालात ।
वही फूस की झोपड़ी , वही पूस की रात ।।
होरी की सारी फ़सल, चढ़ी ब्याज की भेंट ।
भूख प्यास का मूलधन, धनिया रही समेट।।
सिंहासन पर जो चढ़े, जनता की जय बोल ।
जनता उनकी कार का, अब केवल पेट्रोल ।।
रख किसान की मौत पर, कुछ अभिशप्त सवाल।
आँसू-आँसू खेलते , संसद में घड़ियाल ।।