युग बदले, बदले नहीं होरी के हालात ।
वही फूस की झोपड़ी , वही पूस की रात ।।
होरी की सारी फ़सल, चढ़ी ब्याज की भेंट ।
भूख प्यास का मूलधन, धनिया रही समेट।।
सिंहासन पर जो चढ़े, जनता की जय बोल ।
जनता उनकी कार का, अब केवल पेट्रोल ।।
रख किसान की मौत पर, कुछ अभिशप्त सवाल।
आँसू-आँसू खेलते , संसद में घड़ियाल ।।