भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुंसी निपट निगुनियाँ बोल / भूपराम शर्मा भूप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे फेल करो इसुरिया मुंसी निपट निगुनियाँ बोल।

तीनि खुराकैं दईं साल मैं सेर-सेर भरि तोल।
छठे छमाहे दूध देन तोहि लई बकरिया मोल॥

पारसाल के कनागतनु में खेरापती मंगोल।
नाहिं जिमाये तोई भराय दई दुधलपसी इक डोल॥

कचरा-फूंटैं और भुंटियाँ तो कौ दईं अतोल।
खटिया के पाये छुलवायदये चिकने और मझोल॥

मूँगफरी मटरा के होरा देती रही अतोल।
चारि छै दफै तेरे चूसन पै गन्नऊ दै दये छोल॥

पट्टी पुजी खुसी सै दओ गिर्री को रुपिया खोल।
एक मलैया मठा भेजि दओ खरी मिठाई घोल॥

पहली करी किताब खतम जौ दये धरी भरि तोल।
दियासराई बंडल लै दओ टुपिया लै दई मोल॥

कै तो इसुरियै लिखि दै फिरि सै अव्वल या डोल।
नायँ मेरे फीसनु के पैसा जल्द गाँठ सै खोल॥

फेल लिखो मेरो इसुरिया हाय रजिट्टर खोल।
पास लिखत का हाथ टूटि गए बैरी कछु तौ बोल॥

डिप्टी के आवन पै कैसे बोलै मीठे बोल।
अबकी आबैगो तो तेरी खोल देऊँगी पोल॥

नायँ मानैगो करौं बुराई तेरी घर-घर डोल।
पास करै तौ कंडा दै जाऊँ अरु इक कदुआ गोल॥