मुकरियाँ-1 / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
उसको प्रतिपल चलना आता।
रुकना उसको कभी न भाता।
उछले मचले गाये कविता।
क्या सखि, साजन?ना सखि, सरिता।
अपना सुख-दुख उसे सुनाऊँ।
वह रूठे तो उसे मनाऊँ।
जब जी चाहा सँग में खेली।
क्या सखि, साजन?नहीं,सहेली।
अंधकार में राह दिखाती।
जीवन को आसान बनाती।
उससे मेरी दुनिया उजली।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, बिजली।
करे साथ मे सैर सपाटा।
उसके संग न मुझको घाटा।
साथ निभाती पथ में प्रतिपल।
क्या प्रिय, सजनी ? ना प्रिय, चप्पल ।
जब भी होठों को छू जाए।
तन-मन की सब थकन मिटाए।
उसका कोई नही पर्याय।
क्या सखि,साजन? ना सखि, चाय।
इधर- उधर मैं उसे घुमाऊँ।
लेकिन मन ही मन ललचाऊॅ।
करता कभी न कोई शिकवा।
क्या सखि, साजन,ना सखि, हलवा।
मीठे सुर में करे प्रशंसा।
कभी प्रेम की हो अनुशंसा।
पूरा जग उसका दीवाना।
क्या सखि, साजन?ना सखि, गाना।
उसकी चाहत ऊँची उड़ना।
सखियों के सँग खूब विचरना।
खूब जमाये अपना रंग।
क्या प्रिय, सजनी? नहीं, पतंग।
जब -जब उसने ली अंगड़ाई।
तब-तब मेरी नींद उड़ाई।
रहम न करती वह बेदर्दी।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, सर्दी।
हरदम मेरा पीछा करता
लेकिन अंधकार से डरता
रहना दूर न उसको भाया
क्या सखि, साजन? ना सखि,साया।
रंग सुहाना पतली काया।
हरदम मेरे मन को भाया।
हुई गुणों की मैं तो कायल।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चावल ।
ऐसा उसका जादू छाया।
इन पलकों पर उसे बिठाया।
रूप निखारा किया करिश्मा।
क्या सखि, साजन ?ना सखि, चश्मा।
उसके मुख से शहद टपकता।
पेट बडा- सा जैसे मटका।
वादों से झोली भर देता।
क्या सखि, साजन? ना सखि, नेता ।
खुद तो घूमे रात-रात भर।
मुझे सुलाता , हर लेता डर।
जब-तब करता वह होशियार।
क्या सखि, साजन? न, चौकीदार।
अक्सर वह सपनों में आता।
बहुत सताता , मुझे डराता।
पता नहीं वह किसका पूत।
कर सखि, गुंडा?ना सखि, भूत।
करता गुस्सा दाँत दिखाकर।
खुश होता है मुझे चिढ़ाकर।
डर कर भागूं घर के अंदर ।
क्या सखि,साजन?ना सखि,बन्दर।
घर की पहरेदारी करता।
कभी न थकता, कभी न डरता।
ले लेता चोरों से पाला।
क्या सखि, साजन,ना सखि, ताला।
रंग सुनहरा उसने पाया।
मीठेपन से सदा लुभाया।
उसको करते सब ही पसन्द।
क्या सखि, साजन?नही, मकरन्द।
जो भी सारे सुख-दुख सहती।
वे सब के सब आकर कहती।
करे न कोई माँग बावरी।
क्या प्रिय, सजनी?नहीं, डायरी।
इठलाती वह फूल तोड़ती।
फिर माला में उन्हें जोड़ती।
लगती जैसे कोई जोगिन।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, मालिन।
जब मैं चाहूँ तब वह बोले।
अगर रोक दूँ मुँह ना खोले।
अक्सर वह बहलाता है मन।
क्या सखि,साजन? न, टेलीविजन।
रख दे मन की बात खोलकर।
किन्तु कहे ना कभी बोलकर।
बने निगोड़ा दिल उत्पाती।
क्या सखि, साजन?ना सखि, पाती।
सारा भार सहज सह जाता।
लेकिन तनिक न वह घबराता।
कहे न कोई उसको कायर।
क्या सखि, साजन?ना सखि, टायर।
मेरी तो वह एक न सुनता।
खुद अनबूझे सपने बुनता।
उसके दिल में है कोलाहल।
क्या सखि, साजन?ना सखि, पागल।
कभी इधर तो उधर चिपकती।
सारी- सारी रातें जगती।
काया से वह दुबली-पतली।
क्या प्रिय, सजनी? नहीं, छिपकली।
सब दीवारें ,बन्धन तोड़े।
लेकिन कभी न मुखड़ा मोड़े।
मुझे सुलाता वह खुद जगकर।
क्या सखि, साजन?ना सखि, हिमकर।
मेरे मन को बहुत लुभाए।
तीखा-मीठा मन हो जाए।
बात निराली उसकी अपनी।
क्या सखि, साजन?ना सखि, चटनी।
जब-जब वह खुश होकर हँसतीं।
सारी चीज़ें प्यारी लगतीं।
सपनों को लगती है पाँखें।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, आँखें।
बिना बुलाए वह आ जाता।
नहीं बुद्धि से उसका नाता।
बाँधे उसे न कोई रस्सा।
क्या सखि, साजन?ना सखि, गुस्सा।
जब जब उसको गले लगाता।
लगता कोई घर नाता।
मुझे जकड़कर वह इतराई।
क्या प्रिय,सजनी?ना प्रिय, टाई।
कभी रूठकर मुझसे चल दे।
निज आलिंगन अगले पल दे।
वह मेरे सपनों की दुनिया।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, निंदिया।
बेशक वह खुद ही जल जाता।
मगर मुझे वह भोज्य खिलाता।
उसे तलाशूं घूमूँ वन-वन।
क्या सखि, साजन?ना सखि, ईंधन।
साफ-सफाई दिन भर करती।
मेहनत से वह कभी न डरती।
अनपढ़ फिर भी बातें गहरी।
क्या प्रिय,सजनी?ना प्रिय,महरी।
जब-तब मुझको बहुत लुभाता।
लेकिन सफल नहीं हो पाता।
मुझ पर चाहे वह आधिपत्य।
क्या सखि, साजन?ना सखि,असत्य।
जब चाहे वह जी भर रोता।
आँसू में आशाएँ बोता।
कभी मोड़ लेता मुख कर जिद।
क्या सखि,साजन? ना सखि, वारिद।
तेज धूप जब मुझे सताती।
या रिमझिम कर बारिश आती।
मुझे सुरक्षित घर वह लाता।
क्या सखि, साजन? ना सखि, छाता।
अपने तन पर चोटें खाता।
तब जाकर काबिल बन पाता।
लेकिन भाता यह परिवर्तन।
क्या सखि, साजन?ना सखि, बर्तन।
देखूँ फिर भी मन नहीं भरता।
समय कीमती मेरा हरता।
उसकी यादें हर दिन हर पल।
क्या सखी, साजन? नहीं, सीरियल।
देख उसे मन खिल-खिल जाता।
उल्लासित होकर इतराता।
खुशियाँ भर दे अंग-प्रत्यंग।
क्या सखि, साजन?नहीं सखि, रंग।
जब भी हम दोनों मिल जाते।
मिलकर सारा घर चमकाते।
डर कर भागें हर बीमारी।
क्या सखि, साजन?नहीं,बुहारी।
इधर उधर की खबर सुनाता ।
नए- नए वह राज बताता।
बातें सारी हैं दमदार।
क्या सखि, साजन? नहीं,अखबार।
ऊँचा उड़ना उसकी आदत।
रोक न पाए उसको आफत।
अस्त्र-शस्त्र ना उसके रक्षी।
क्या सखि, सपना?ना सखि,पक्षी।
सारी धरती खोद डालता।
श्रम करने के लिए भागता।
सभी काम को हरदम तत्पर।
क्या सखि, साजन? नहीं, ट्रैक्टर।
लेन देन है उससे गहरा ।
बड़ा सख्त हैं उस पर पहरा।
है जीवन का वहीं आधार।
क्या सखि, साजन? न,कोषागार।
सम्मुख मेरे जब भी आता।
उसे देखकर मन ललचाता।
बढ़ती पाने की अभिलाषा।
क्या सखी, साजन? नहीं, पतासा।
जाने उसको विष क्यों भाया।
वह ही समझे उसकी माया।
शिवपूजन उस बिना अधूरा।
क्या सखि, साजन? नहीं, धतूरा।
शाम सवेरे पूजूँ जिनको।
भाँग धतूरा भाता उनको।
कष्टों के हैं वही क्षयंकर ।
क्या सखि,साजन? ना, शिव शंकर।
खण्डित करती भाईचारा।
पल में कर दे वह बँटवारा।
बिखरा देती वह परिवार।
क्या सखि, सजनी?नहीं, दीवार।
सीधी-सादी बेहद भोली।
समझ न आती उसकी बोली।
सह जाती गुमसुम अन्याय।
क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय, गाय।
दबे पाँव वह घर में आता।
गहने-पैसे सब ले जाता।
भाग छूटता सुनकर शोर।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चोर।
वह भोला है सीधा-सादा।
रहता मेहनत को आमादा।
फिर भी भूखा रहता बहुधा।
क्या सखि, साजन?नहीं सखि, गधा।
तेज हवा से बातें करता।
बाधाओं के पार उतरता।
हरदम साहस रहता संग।
क्या सखि, पक्षी ? नहीं,तुरंग।
सुबह-शाम वह करता पूजा।
काम न कोई उसका दूजा।
उसकी दुनिया सिर्फ मुरारी।
क्या सखि, साजन?नहीं, पुजारी।
सारे घर की करे सफाई।
पतली दुबली काया पाई।
उसको चाहे घर हर नारी।
क्या सखि, साजन?नहीं, बुहारी।
तेज हवा से वह बतियाती।
वह बल खाती,वह इठलाती।
लगता प्रिय उसका हर रंग।
क्या प्रिय, सजनी? नहीं,पतंग।
मुझको अपना खौफ़ दिखाती।
स्वेद छुड़ाती नींद उड़ाती।
करती मेरी उचित समीक्षा।
क्या प्रिय, सजनी? नहीं, परीक्षा।
घावों को वह छूता जब-जब।
मिलता मुझको चैन सदा तब।
रहता मेरे घर मे हरदम।
क्या प्रिय, साजन?ना प्रिय, मरहम।
पतली-दुबली बल खाती-सी।
जकड़ पाश में इठलाती- सी।
मुझे बनाकर देती लस्सी।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, रस्सी।
उसने एक न कोना छोड़ा।
खुद को दिशा दिशा से जोड़ा।
क्या धरती, तारे, चन्दा, रवि।
क्या सखि, साजन? नहीं सखी, कवि।
कभी निगोड़ा ह्रदय लुभाता।
लोभ दिखाकर पास बुलाता।
कर पाती मैं कब इंकार।
क्या सखि, साजन?नहीं,बाजार।
चुपके-चुपके वह आ जाता।
आकर मुझको बहुत सताता।
बढ़ता लेकिन फिर अपनापा।
क्या सखि,साजन?नहीं, बुढापा।
बेशक आकर काम बढ़ाता।
चैन प्रदायक वह सुखदाता।
करूँ मैं घर की साज सँवार।
क्या सखि, साजन? नहीं, रविवार।
सही न जाए उससे दूरी।
वह जीवन के लिए जरूरी।
उसके बिन सब व्यर्थ प्रयोजन।
क्या सखि,साजन?ना सखि, भोजन।
रंग -रँगीली वह मन भाती
लुभा- लुभा कर पास बुलाती
निखरे जब देखे हलवाई।
क्या सखि, सजनी?नहीं,मिठाई।
उसी ओर मैं खिंचती जाऊँ।
बहकी- महकी साँसे पाऊँ।
होता पुलकित प्रतिपल तन- मन।
क्या सखि, साजन?ना सखि, उपवन।
मुझे अकेली जब भी पाए।
तभी दौड़कर मुझ तक आए।
करे मूक मुझसे संवाद।
क्या सखि, साजन?ना सखि, याद।
रंग गुलाबी उसको भाता।
दिल पर जादू सा कर जाता।
आँखे दर्शन को अति आतुर।
क्या सखि, साजन?ना सखि, जयपुर।
छुप-छुपकर वह घर में आता।
जो जी चाहे डटकर खाता।
वह मनमौजी बड़ा प्रदूषक।
क्या सखि, प्रेमी,?ना सखि, मूषक।
वह तो पगली प्रेम दीवानी।
समझाया पर बात न मानी।
उसे लुभाए ढोल मँजीरा।
क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय ,मीरा।
उसके रंग में जब रँग जाऊँ।
सही -गलत कुछ सोच न पाऊँ।
पछताती जब होता बोध।
क्या सखि, प्रेमी ? ना सखि, क्रोध ।
रँगकर मुझको अपने रंग में।
आँखों मे भर दे वह सपने।
सखि, सिंगार अपूर्ण उस बिना।
क्या सखि, साजन?नहीं सखि, हिना।
उसके सुर में जादू कोई।
मन्त्र-मुग्ध मैं उसमे खोई।
छेड़े मेरे मन के तार ।
क्या सखि, साजन?नहीं, सितार।
गहने,कपड़े जो दूँ उसको।
बड़े प्रेम से रखती सबको।
वह है लम्बी, चौड़ी, भारी।
क्या प्रिय, सजनी?ना, अलमारी।
ऊँच नीच का भेद न जाने।
बस अपनापन ही पहचाने।
वह है खुशियों का प्रतिपालक।
क्या सखि, साजन?ना सखि, बालक ।
रात चाँदनी उसे निहारूँ।
उसके ऊपर मन को वारूँ।
कसता और प्रेम का फंदा।
क्या सखी, साजन?ना सखि, चंदा।
रोम-रोम में वह बसता है।
मेरे सारे दुख हरता है।
जीवन नैया वही खिवैया।
क्या सखि, साजन?नहीं,कन्हैया ।
उसको काले मोती भाये ।
वह जग की सब गाथा गाये ।
उसके सम्मुख झुकता मस्तक।
क्या सखि, साजन?ना सखि, पुस्तक।
जो भी पूछूँ झट बतलाता।
हर पल मेरे मन को भाता।
मददगार रहता वह हरपल।
क्या सखि, साजन? ना सखि, गूगल।
उसके साए में सो जाऊँ।
तन-मन मे शीतलता पाऊँ।
लगता जैसे कोई मुनिवर।
क्या सखी, साजन?ना सखि, तरुवर।
गोदी में सिर रख कर सोती।
क्षण में अपने सब गम खोती।
हर पल उसका साथ सुहाता।
क्या सखी, साजन?ना सखि, माता।
बेचैनी वह मुझमे भरता।
मुझको पानी- पानी करता।
कर दे मुश्किल मेरा जीना।
क्या सखि, साजन?नहीं,पसीना।
अक्सर आँखों में बस जाता।
उसके साथ बहुत रस आता।
वह तो मेरा ही है अपना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सपना।