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मुक़ाबला-ए-हुस्न / फ़हमीदा रियाज़

कूल्हों में भँवर जो हैं तो क्या है
सर में भी है जुस्तुजू का जौहर
था पारा-ए-दिल भी ज़ेर-ए-पिस्ताँ
लेकिन मिरा मोल है जो इन पर
घबरा के न यूँ गुरेज़-पा हो
पैमाइश मेरी ख़त्म हो जब
अपना भी कोई उज़्व नापो !