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मुक़ाबला हो तो सीने पे वार करता है / ख़ालिद महमूद

मुक़ाबला हो तो सीने पे वार करता है
वो दुश्मनी भी बड़ी पुर-वक़ार करता है

जो हो सके तो उसे मुझ से दूर ही रखिए
वो शख़्स मुझ पे बड़़ा ऐतबार करता है

नगर में उस की बहुत दुश्मनी के चर्चे हैं
मगर वो प्यार भी दिवाना-वार करता है

मैं जिस ख़याल से दामन-कशीदा रहता हूँ
वही ख़याल मेरा इंतिज़ार करता है

शिकायतें उसे जब दोस्तों से होती है
तो दोस्तों में हमें भी शुमार करता है