भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक़ाबले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं / मुज़फ़्फ़र 'रज़्मी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुक़ाबले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं
ये वलवले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाए
के फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

है मेरे साथ मेरे दुश्मनों से रब्त उन्हें
ये सिलसिले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

अगर है कोई शिकायत तो मिल के बात करो
मुरासिले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

किसी ने क़त्ल किया और सज़ा किसी को मिली
ये फ़ैसले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

जो रह-ज़नों का तआवुन क़ुबूल करते हैं
वो क़ाफ़िले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

तनाज़ेआत में बेहतर है सुल्ह कर लेना
नए गिले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

ये लग़्ज़िशों का तसलसुल ये माज़रत पैहम
ये मरहले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं

चराग़-ए-हक़ हैं तो ख़ामोश क्यूँ हैं वो 'रज़्मी'
बिना जले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं