मुक्तक-02 / रंजना वर्मा
नन्हा सा बीज छिपाये ज्यों तरुवर का पूरा साज रहे
ऐसे ही नामों में छिप कर दुनियाँ का हर अंदाज रहे।
बिन नाम न कुछ जाना जाता पहचान नहीं होने पाती
गूंगे के मुख में जैसे गुड़ भगवान नाम में राज रहे।।
अंतरंग है रिश्ते सारे किन्तु समय पर साथ नहीं
जब भी पांव फिसलने लगते गहता कोई हाथ नहीं।
उगता सूरज पूजित होता सदा सदा जन मानस में
अस्त हो चले रवि को कोई कभी झुकाता माथ नहीं।।
सराहो नित्य उनको सत्य के जो साथ रहते है
कदम यदि लड़खड़ाते हैं बढाये हाथ रहते हैं।
उन्ही का है सफल जीवन उन्हीं की नित प्रशंसा हो
सदा ही साथ उन के राम कोशल नाथ रहते हैं।।
अपमान करे मग़रूर रहे
बहिरंग हमेशा दूर रहे।
जिसमें अपनापन शेष नहीं
अपने ही नशे में चूर रहे।।
जमाने मे हमेशा शख़्स वो मजबूर होता है
सदा करता रहे मेहनत वही मजदूर होता है।
कभी मजबूरियां हैं काम के आड़े नहीं आतीं
कभी टूटा नहीं साहस से भी भरपूर होता हैं।।