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मुक्तक-09 / रंजना वर्मा

हृदय में है बड़ी उलझन चले आओ
निभाने स्नेह का बन्धन चले आओ।
कन्हैया दूर जब से हो गये हो तुम
बहुत आतुर है मेरा मन चले आओ।।

मिल गयी हर एक को है जाने कैसी जिंदगी
विश्व पूजे करे कोशिश जिये ऐसी जिंदगी।
चाँदनी में खिल रही है चाँद को रौशन करे
सिन्धु में जग के पड़ी इक बूंद जैसी जिंदगी।।

यार ये भोर के उजाले हैं
रात ने प्यार से सँभाले हैं।
बाँटने के लिये आया सूरज
रब के अंदाज़ सब निराले हैं।।

माँ तो केवल माँ होती है
हर बच्चे की जां होती है।
उसके जैसी सहनशीलता
किसमे और कहाँ होती है।।

गीत मेरे सदा गुनगुनाते रहो
स्वप्न मेरे नयन में सजाते रहो।
मैं तुम्हे देख कर मुस्कुराती रहूँ
प्यार की रागिनी तुम सुनाते रहो।।