मुक्तक-100 / रंजना वर्मा
हिंदी ये अपनी हिंदी है
भारत माता की बिंदी है।
इस अपनी हिंदी के आगे
दूजी हर भाषा चिन्दी है।।
साथ है जब से तुम्हारा मिल गया
प्राण बेबस को सहारा मिल गया।
थी भटकती जो लहर में बेवजह
आज कश्ती को किनारा मिल गया।।
हे मनमोहन श्याम साँवरे, हे मनमीत सुनो,
सदा सदा हम दास चरण के,अवगुण तो न गुनो।
विरद तुम्हारा सुन के गिरिधर,चले द्वार आये,
एक झलक पायें तेरी, ऐसा पट पीत बुनो ।।
तेरे दुआरे हे श्याम सुंदर ये सिर हमारा झुका हुआ है,
बहुत दिनों से विनय भरा मन भी द्वार तेरे रुका हुआ है।
बड़े पतित हम न गुण है कोई तेरी दया की है बस तमन्ना
बहा के आँसू थके नयन अब तो धैर्य अपना चुका हुआ है।।
हिंदी भारत माँ की बिंदी सब के मन की भाषा
इसकी उन्नति अपनी उन्नति यह हम सब की आशा।
रहे समेटे अपने मे यह सदा ज्ञान की गठरी
संस्कृति रक्षण परहित साधन है इस की परिभाषा।।