मुक्तक-104 / रंजना वर्मा
किया जो कॉल है तुमने निभा जाते तो अच्छा था
घनेरी प्यास धरती की बुझा जाते तो अच्छा था।
सुनो घन श्याम कजरारे तुम्हीं से आस है सब को
घटाएँ संग ले आकाश में छाते तो अच्छा था।।
माँ की पूजा किया करूँगी
चरणामृत नित पिया करूँगी।
माता की तो कसम यही है
जग को जीवन दिया करूँगी।।
सभी दुर्वृत्तियाँ त्यागो करो अब शुद्ध निज मन को
मिटा दो वे सभी दुर्गुण जनम देते जो रावन को।
जरा सा अंश भी इस का करेगा ज़िन्दगी दूभर
मिटा दशशीश को जड़ से जियो निर्द्वन्द्व जीवन को।।
चलो नित सत्य के पथ पर बुरे सब गुन जला डालो,
गलत जो भाव हैं मन में उन्हें चुन चुन जला डालो।
जला कागज के रावण को दशहरा भी मनाना क्या
बहुत अच्छा हो यदि अपने सभी अवगुन जला डालो।।
चलो आज हम अपने दिल को टटोलें
छिपे राज़ हैं जो उन्हें आओ खोलें।
जलायें चलो आज दुर्गुण का रावण
सदा राम की, सत्य की जय हो बोलें।।