मुक्तक-14 / रंजना वर्मा
बड़ी  खूबसूरत  किताबों  की  दुनियाँ
सवालों की दुनियाँ जवाबों की दुनियाँ।
इन्ही   से   हुई    रौशनी    जिंदगी   में
सलामत हो यह आफताबों  की दुनियाँ।।
कभी भी सैनिकों को इस तरह  डरते नहीं देखा
किये  अपमान  की ऐसे  क्षमा भरते  नहीं देखा।
जवानों के हमारे हैं  लिये  सर  काट  जालिम ने
जुबाँ से कह  कड़ी निंदा फ़क़त करते नहीं देखा।।
अधर पर धर मधुर मुरली  बजाता  जब कन्हाई है
नज़र से तीर  हिरदय  पर  चलाता  तब कन्हाई है।
नहीं सुध बुध रहे तन की नियंत्रण भी नहीं मन पर 
बिना खोले अधर हम को  बुलाता  अब  कन्हाई है।।
अंधियारों की चादर ओढो चटक उजाले मन्द करो
छिपा  न  पाओगे  कुछ  चाहे  मेरी  आँखें  बंद करो।
अंतर्मन  में  जलता  दीपक  सारे  दृश्य  दिखा देगा
तोड़ो  सभी  वर्जनाओं  को  नारी को स्वच्छंद करो।।
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घनश्याम  साँवरे  निज  दरबार  मे  बुलाना
संसार   भूल  जाये   पर  तुम  नहीं  भुलाना।
बस  एक  बूंद  जैसा    अस्तित्व  है  हमारा
भव सिन्धु अगम दुस्तर तुम पार तो लगाना।।
 
	
	

