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मुक्तक-1 / बाबा बैद्यनाथ झा
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इस अज्ञ पर अब ध्यान देकर ज्ञान दो माँ शारदे
सब छंद लिख पाऊँ यही वरदान दो माँ शारदे
बढ़ती रहे उत्कृष्टता हर गीत कविता छंद में
धनधान्य या वैभव नहीं यश मान दो माँ शारदे
था प्रथम अक्षर लिखाया आपने
छंद भी क्रमशः सिखाया आपने
लिख रहा साहित्य यह जो आज मैं
मार्ग यह गुरुवर दिखाया आपने
करूँ नित भक्ति मैं प्रभु की मिले नर श्रेष्ठ तन मुझको
लिखूँ हर छंद ही सुन्दर नहीं है योग्य फ़न मुझको
अधिक धन सम्पदा की भी नहीं चाहत कभी रखता
मिले इस ज़िन्दगी में बस सदा संतोष धन मुझको