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मुक्तक-24 / रंजना वर्मा

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खुद पे इतना गुमान हो गोया
मुट्ठियों में जहान हो गोया।
वो समझते हैं पाँव के नीचे
बिछ गया आसमान हो गोया।।

तुम फरेबों भरी अंजुमन त्याग दो
कष्ट दे और को वो लगन त्याग दो।
हो सके पीर हर लो जमाने की तुम
जो टिका झूठ पर वो वचन त्याग दो।।

छोड़ गये यों मुझे अकेली जीने का सम्बल दे जाओ
साथ तुम्हारे थे जो बीते आज वही कुछ पल दे जाओ।
कैसे कदम बढाऊँ आगे हर पग घेर रही तनहाई
सम्भव हो साथी तो मुझ को मेरा बीता कल दे जाओ।।

पुष्पित कलियाँ लुटा रही हैं, मदभीनी मुस्कान
लगता जैसे मदनराज ने, ले ली हाथ कमान।
डाली डाली कोयल कूके, गाये स्वागत गीत
श्याम सघन घन बजा दुन्दुभी, करते हैं सम्मान।।

उमड़ घुमड़ कर मेघा आये, पड़े न मन को चैन
ऊपर बरसे श्याम बदरिया, इधर छलकते नैन।
शीतल सुखद बही पुरवाई, बैठी आंखें मूंद
स्वप्न सही पर श्यामसुंदर के, लगते मीठे बैन।।