भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्तक-35 / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिए चाँदनी चाँद जब मुस्कुराये
सितारों के' दीपक गगन में जलाये।
मगर बादलों आँधियों की न पूछो
कभी रूप देखे कभी ये छिपाये।।

मुखौटे सब लगाएं तो नमन करना कठिन होगा
सभी दुश्मन अगर हों तो गमन करना कठिन होगा।
नहीं यह चाहता कोई कि दागी जन बनें नेता
लगा हो दाग़ जब सब में चयन करना कठिन होगा।।

एक भूले हुए ग्रास से
एक चटकी हुई प्यास से।
जागते आज अरमान हैं
मीत की प्रीति विश्वास से।।

पिया के मधुर आगमन की घड़ी
बड़ी खूबसूरत मिलन की घड़ी।
हृदय का समर्पण किया है जिसे
उसी के चरण में नमन की घड़ी।।

वो' बीती घड़ी याद आने लगी
विरह की घड़ी जब सताने लगी।
थे' सोये पड़े सुख के' मासूम पल
तड़प दिल की उन को जगाने लगी।।