मुक्तक-42 / रंजना वर्मा
परहित जब जीवन त्याग दिया यश की ह् कभी कुछ चाह रही
सुख भूल गया सिगरा अपना अपनी हितआस गुनाह रही।
अनुराग विराग हुए सम तो तज मोह दिया सुख सम्पति का
अनुरक्त हुआ हरि के पग में जग की तब क्या परवाह रही।।
दुख देख बुद्ध विश्व से विरक्त हो गये
संसार त्याग आत्म से अनुरक्त हो गये।
था छोड़ दिया महल दार बाल सभी को
दुख के विनाश के लिये जगभक्त हो गये।।
सांवरे के द्वार आये गीत गाये प्यार से
जो मिले आशीष हो सन्तुष्ट जायें द्वार से।
आइये श्री श्याम प्यारे बाँसुरी को छेड़िये
विश्व दीवाना बने छेड़े स्वरों की धार से।।
राधिका प्यारे रही मेरी अधूरी कामना
क्यों थकेगी चाह ये जीती रहेगी भावना।
गोपियों की प्रीति ने बांधा नहींथा सांवरे
है बची हे श्याम तेरे प्यार की आराधना।।
गैल सीधी प्यार की व्यापार कोई क्यों करे
सांवरे ले नाम तेरा दोष औरों पे धरे।
आ कन्हैया लूँ तुझे मैं गेह नैनों के सुला
हैं हमारी भावना के प्यार से प्याले भरे।।