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मुक्तक-4 / बाबा बैद्यनाथ झा
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लगे कुछ बाल जब पकने, इसे संकेत हम मानें
करें सब काम ही अच्छे, यही प्रण आज हम ठानें
बुढ़ापा शीघ्र आएगा, ख़ुदा के पास है जाना
मिला है जन्म मानव का, सही कर्त्तव्य पहचानें
ज़ोर का भूकम्प कैसा गाँव में आया हुआ है,
इस प्रलय से मातमी आतंक अब छाया हुआ है
नष्ट हैं घर द्वार सारे हानि है जन माल सब की,
देखकर वीभत्स आलम गाँव घबड़ाया हुआ है
हाथ से डफली बजाती नायिका संलग्न है,
ध्यान प्रियतम का लगाकर याद में ही मग्न है
शीघ्र आने कह रही है योगिनी का रूप धर,
घोर बाबा की तपस्या आज समझो भग्न है