मुक्तक-53 / रंजना वर्मा
पलक पांवड़े डाले बैठी, राह खड़ी सजना
कब हो मेरी आशा पूरी, सोच बड़ी सजना।
जीवन का पथ कितना लम्बा, खत्म नहीं होता
देखो टूट न जाये मेरी, साँस लड़ी सजना।।
साँवरे से जब नैन मिले तब नैनन में कुछ बात चली
अर्द्ध निमीलित नैन हुए नहि याद रही निज गेह गली ।
भूल गयी मन की सुधि वो किस हेतु भला निकली घर से
हाथ मे श्याम मृदंग लिये अरु राधिका हाथ सजी मुरली।।
उठो जागो अंधेरे खो रहे हैं
कृषक खेतों में दाने बो रहे हैं।
किरन हर फूल से लिपटी पड़ी है
अनोखे खूब रिश्ते हो रहे हैं।।
वक्त अच्छा न बुरा होता है
खुद से इंसान डरा होता है।
बाजुओं पर हो भरोसा जिसको
आदमी वो ही खरा होता है।।
करे निंदा अगर कोई न वैरी मानिये उस को
समालोचक सुधारक है यही कह जानिये उस को।
भरे जो आप मे हैं खोट वो चुन चुन निकालेगा
हितैषी आप का है जानिये पहचानिये उस को।।