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मुक्तक-67 / रंजना वर्मा

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कभी स्वदेश के लिये विचार तो किया करो
जरा स्वराष्ट्र प्रेम का प्रचार तो किया करो।
करो प्रयत्न देश का विकास हो सके तभी
सदा न भूल हो कभी सुधार तो किया करो।।

ना जाने क्या उस विधना के मन मे आया है
जो उस ने इतना सुन्दर संसार बनाया है।
यों तो प्राण सभी में डाले जड़ हो या चेतन
किन्तु किसी को सचल किसी को अचल बनाया है।।

भगवान ने इंसान का जब तन बना दिया
भर कर अनेक भाव से फिर मन बना दिया।
संसार को वो कर सके अनुकूल स्वयं के
बस सोच कर यही उसे चेतन बना दिया।।

भावों की कोरों पर लग रही फफूँद
बैठी हो कर उदास नयन लिये मूँद।
सुधा भरी गागर ले अम्बर में घन आया
अधरों पर टपक गिरी ममता की बूँद।।

तिनका तिनका जोड़ परिन्दे तब घर हो
कर मेहनत जी तोड़ परिन्दे तब घर हो।
अपनी राह स्वयं ही है चलनी पड़ती
सब की आशा छोड़ परिन्दे तब घर हो।।