मुक्तक-78 / रंजना वर्मा
वतन तुम को बुलाता है चले आओ
सदा सुख ही दिखाता है चले आओ।
हमेशा प्यार दे कर है तुम्हे पाला
वही ऋण याद आता है चले आओ।।
तुम्हारी याद ले कर हँस रही हूँ रो रही हूँ मैं
तुम्हारी याद के आँसू से मुखड़ा धो रही हूँ मैं।
नहीं तुम साथ हो तो क्या तुम्हारी याद तो सँग है
तुम्हारी याद का ले कर बिछौना सो रही हूँ मैं।।
मगन मन झूलती झूला सखी लो आ गया सावन
लिये हरियालियाँ अनुपम धरा पर छा गया सावन।
किया सिंगार है सोलह पिया का दिल लुभाने को
झुला दे झूलना प्रियतम मधुर मन भा गया सावन।।
कहे राधिका बाँसुरी से बता दे कि क्यो श्यामसुंदर अधर से लगी है
नहीं प्रीत की कृष्ण ने है किसी से तो क्यों प्रीत तुझ से ही ऐसी जगी है।
नहीं जानती कोई जप तप मैं राधा नही की कभी कोई पूजा न अर्चा
सदा चाहती हूँ छुअन साँवरे की उसी की प्रणय प्रीत तन मन पगी है।।
तन के उजले हैं मन के काले है
रंग संसार के निराले हैं ।
हमने ही दूध पिलाया है उन्हें
आस्तीनों में नाग पाले हैं।।