मुक्तक-85 / रंजना वर्मा
बहुत है गर्व भारतभूमि पर जो जन्म पाया है
यहीं जन्मे पले हम ने यहीं जीवन बिताया है।
अनोखी जन्मभू हम को कभी रोने नहीं देती,
इसी मिट्टी में खो जाने का अरमाँ भी सजाया है।।
पल भर में अनहोनी को होना कर दे
प्रेम ज्योति आलोकित मन कोना कर दे।
कुम्भकार कब है ईश्वर से कम होता
चाक चढ़ा कर मिट्टी को सोना कर दे।।
जिंदगी की सभी से यारी है
मौत का डर भी मगर तारी है।
चल रहा वक्त का आरा हर पल
कल तेरी आज मेरी बारी है।।
रहे दिन रात बहलाते न दिल से फिर भी गम निकले
सुखाये धूप में अरमान तप कर फिर भी नम निकले।
जनमतीं दिल की हर उम्मीद है दम तोड़ ही जाती
यही चाहत है अब दिल की तेरी चौखट पे दम निकले।।
जिंदगी रब की मेहरबानी है
उसका अहसास है निशानी है।
चलते चलते ये जब ठहर जाये
समझिये सिर्फ इक कहानी है।।