मुक्तक-91 / रंजना वर्मा
थी शिकायत कई किन्तु सब चुक गयी
जब मिलायी नजर तो नजर झुक गयी।
थाम  कर  हाथ  उस  ने  इशारा किया
दिल धड़कने लगा  साँस भी  रुक गयी।।
जिंदगी की डायरी  अब  तो  पुरानी हो चली
अनुभवों के बोझ से दब कर दिवानी हो चली।
फट  रहे  पन्ने  पुराने  हाथ भी अब थक चले
आज यह दैनन्दिनी  गुजरी  कहानी  हो चली।।
भोर की पहली किरन सिंगार जब करने लगे
प्रात रवि से उदय की मनुहार जब करने लगे,
तब रचा करती रंगोली  विविध  रंगों से धरा
गगन के आँगन हवा जयकार जब करने लगे।।
मन तुमको नित्य पुकार रहा
तन मन जीवन सब वार रहा।
घनश्याम कभी तो दो  दर्शन
यह भक्तों का  अधिकार रहा।।
तलाक  देने  की  जो  धौंस  दिया  करते हैं
बिना वजह जो जिगर चाक  किया करते हैं।
कहते हैं खुद को मसीहा औ खुदा का बन्दा
समझ  के  जानवर  हलाल  किया  करते हैं।।
	
	