मुक्तक-97 / रंजना वर्मा
बरस जा बावरे बादल तुझे सावन बुलाता है
नज़र लग जाये ना तुझको तुझे अंजन बुलाता है।
सुनो घनश्याम अब तो राह तकते हो गए बरसों
चला आ ख़्वाब में मेरे तुझे ये मन बुलाता है।।
सब को दुख से सदा बचाना
सच्चाई से न मुँह चुराना।
रहना हरदम नियम करम से
वैरी को भी गले लगाना।।
यार मेरी जो जिन्दगानी है
एक भूली हुई कहानी है।
याद करने से कुछ नहीं हासिल
ये तो सदियों से भी पुरानी है।।
हृदय में कर्म से अपने सभी के वास तो कीजे
कभी सत्पन्थ चलने का सहज अभ्यास तो कीजे।
हमेशा साथ देता है विधाता सत्य प्रेमी का
बसा सर्वत्र है ईश्वर जरा विश्वास तो कीजे।।
सखी सँग बैठ कर राधा निहारे राह कान्हा की
नयन में श्याम की मूरत हृदय में चाह कान्हा की।
विकल पूछे कबूतर से कहाँ घनश्याम है मेरा
बता महसूस कब होगी गले मे बाँह कान्हा की।।