मुक्तक / विभा रानी श्रीवास्तव
01.
सिंधु जल जो घूंट-घूंट पी लेता।
जीवन के खारेपन से नहीं डरता।
जकड़ी खुद से या हो जो बलात,
उड़ान का सपना स्व नहीं मरता।
02.
कई ने कहा तेरी आदत चुगली की है।
आस्तीन में संभालना अठखेली की है।
चलो पाल रही हूँ तुझे गले लगाकर भी,
हमेशा ही हमारी भक्ति अहिमाली की है।
03.
डर सताता रहता हमसे हमारा सब छीन ले जायेगा कोई।
पल-पल बदलती दुनिया में कितना साथ निभायेंगा कोई।
हमारी कोशिश उतना ही दोष दे लेते जितना हमें दंश देते,
भयावह नहीं ना जो चाहेंगे हम कितना हमें सतायेगा कोई।
04.
दम्भ तृष्णा ना दिमाग रोगग्रस्त करो।
गुम रहकर खल का तम परास्त करो।
दे साक्ष्य सपना चपला धीर अचला है,
स्व का मान बढ़ा रब को विश्वस्त करो।
05.
सबकी राह अलग-अलग औ तरीका जुदा-जुदा।
कोई हँसाता गुदगुदा तो कोई झुँझलाता बुदबुदा।
बुजुर्ग सेवा हो समाज सेवा हो या साहित्य सेवा,
स्वीकार संगी बे-फायदा ना हो जाएं बे-कायदा।
06.
उबलते जज्बात पर चुप्पी ख़ामोशी नहीं होती।
गमों के जड़ता से सराबोर मदहोशी नहीं होती।
तन के दुःख प्रारब्ध मान मकड़जाल में उलझा,
खुन्नस में बयां चिंता-ए-हुनर सरगोशी नहीं होती।
07.
प्रीत की रीत की होती नहीं जीत यहाँ।
ह्रीत के नीत के होते नहीं मीत यहाँ।
शीत यहाँ आगृहीत तड़ीत रूह बसा,
क्रीत की गीत की होती नहीं भीत यहाँ।
08.
असफलता पै नसीहतें नश्तर सा लगता है।
स्याह गुजरता पल शैल-संस्तर सा लगता है।
बढ़ाता आस तारीफ पुलिंदा अग्नि-प्रस्तर सा,
जन्म लेता अवसाद दिवसांतर सा लगता है।
09.
शरारत मिले फौरन आदत बना लेना।
पढ़ कर तीस पारे इबादत बना लेना।
इतफाक न मढ़ा शहादत गले लगाना,
मुस्कुराना हलाक जहालत बना लेना।
10.
प्यार का बदला मिले सम्मान कम से कम हक़ तो होता है।
मृत सम्वेदनाओं वाले पले आस्तीन में सांप शक तो होता है।
अदब-तहज़ीब को भूल कर खुद को ख़ुदा से ऊपर समझे,
हाय से ना डरने वाला जेब से नही दिल से रंक तो होता है।