मुक्तावली / भाग - 4 / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
प्रेम - चाही नहि मधु माधुरी, अथवा कुसुम सुवास
मधुप न ई पहु हृदय पुनि किनिअ प्रेम विश्वास।।31।।
रिझान - धनसँ मिलितथि मिलहि मे, रूपहु रूपसि - टोल
हृदय - देव स्वर रीझितथि तँ कुंजहि पिक बोल।।32।।
चिन्तन - कनक रजत जड धातु ई रक्त मांस निस्तत्त्व
चित चिन्तन कय चेतबे चित् जीवनक परत्व।।33।।
कंदन - बिनु कनने नहि माय धरि पिअबय शिशुकेँ दुग्ध
माँ श्यामा क्रंदन करह पिबह अमृत चित मुग्ध।।34।।
नाम - कतहु रहय संतान यदि सुनय ‘मा ओ’ स्वर छीन
दौड़ि बिलाड़ि पिआब पय, नाम रटह तहुँ दीन।।35।।
सात्विक - तपह ज्वरेँ, चुअबह श्रमेँ घाम, कँपह पड़ि जाड़
नाम ध्यान धय सात्त्विकक भाव, तरह संसार।।36।।
सुमुक्षु - बद्ध न रह मोक्षार्थि भय, बनह मुक्त तोँ नित्य
एतवे जीवन चातुरी एतबे मनुजनु कृत्य।।37।।
भक्ति सन्ध्या - कर्म ज्ञाननिश दिवस थिक सन्ध्या भक्ति प्रमान
भेद अभेदक असित सित मिलित हरित परिमान।।38।।
तार - त्रयी ऋचा सन्ध्या मिलित, सन्ध्या त्रिपदालीन
त्रिपदा व्याहृति गत नियत व्याहृति प्रणव विलीन।।39।।
प्रणव त्रिमात्रिक त्रिगुणमय एकाक्षर विनियुक्त
अक्षर मात्रा अर्थगत से पुनि बिन्दु प्रयुक्त।।40।।