मुक्तावली / भाग - 9 / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
रमता योगी - ने उल्लास तरंग मे ने हताश मरुभूमि
रमता योगी पवन बनि रहइछ सब तरि घूमि।।81।।
भोग वा योग - युवति रूपसी रंग, भोग वासना भवनमे
दंड कमंडलु अंग, योग साधना विपिन मे।।82।।
ग्रहमुक्ति - गृह ग्रह कूर महान, जीवन टीपनि मे जडित
त्याग याग जप दान करिअ, तखन छूटत तुरित।।83।।
निदर्शन - दीप रूप ज्वाला ज्वलित भस्मीभूत पतंग
चेतबय सभकेँ विषम विष विषयक तजिअ प्रसंग।।84।।
कवि काम - कच कुच अधर कपोल, बोल हँसी बिछुरन मिलन
बसि भूगोल खगोल कवि कामिक जीवन भ्रमन।।85।।
संतोष - भवन गगन चूमओ, छूबओ क्षितिज छोर पुनि चास
कंचन धन गिरि गुरु तुलओ, बिनु संतोष उदास।।86।।
संत चरित - कमलक दल पर जल जेना सरिसव आरा धार
चढ़य न कखनहु काम चित संत चरित अविकार।।87।।
पंकज - पकिल जग जलमे जनमि जन पंकज समतूल
अमर अपंक अलिप्त रहि सुरभि भरथि अनुकूल।।88।।
विधि-रेखा - बौक बहिर आन्हर जनम बरु विधि लीखथु रेख
फूसि वचन निन्दा श्रवन, पर तिय छवि न परेख।।89।।
काल-सूची - घड़ी घड़ी देखी घड़ी सूची गतिक न अंत
काल सर्प ई ससरि सिर कखनहु धरत दुरत।।90।।