मुक्तिदाता / नीलेश माथुर


मैं पथिक
एकांत पथ पर चला जा रहा था
हर तरफ
कोहरे का साम्राज्य,
एक दिन
पत्तों पर अपने ओसकण छोड़ कर
कोहरा हटा
और मुझे दिखी उस पथ की सुन्दरता
जिस पर मैं
अनमना सा चलता रहा था
दूर तक,
और उसी पथ पर
मेरे स्वागत में
मुस्कराते हुए खड़े थे
मेरे मुक्तिदाता!

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