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मुक्तिबोध / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
स्वयं की
सीमाएं लांघ
चल पड़ता
कोई
बेपरवाह
अनजान
अकेले
निर्द्वन्द
निर्बाध
यह रास्ता भी
मुक्ति की ओर कहां जाता है