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मुक्ति के लिए कविता / चंद्र कुमार जैन
Kavita Kosh से
शब्दों की अर्थवत्ता को तोड़ने
और
व्यर्थ अर्थों की सत्ता को छोड़ने के बाद
जो रची जाएगी
वही होगी जागरण की कविता !
करेगी संघर्श वह
दिन - प्रतिदिन सीमित होते सुखों के खिलाफ
टूटेगी नहीं वह
जीवित रखेगी अपनी आँखों में
सुख और सौंदर्य के सपनों को
मांजेगी अपने दु:खों से
अपना तन !
निखारेगी अपनी वेदनाओं से
अपना मन !
मुक्त होगी, मुक्त रखेगी सबको
करेगी अपनी ही दुनिया से मुलाकात
वह कविता !