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मुक्त करो / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल
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मैंने तुम्हें देखा
देखता रह गया
तुमने मुझे देखा
तुम मुसकरा दीं
हाथ आगे बढ़े
एक-दूसरे को थाम लिया
बस उसी क्षण से
अटकी है जान
साँस लेने दो
कि समय चले
साँस लेने दो
कि धरा घूमे
बस लौटा दो वो क्षण
मुक्त कर दो
उस मुसकराहट से
ताकि लौट सकूँ
अपने पथ पर।