मुक्त धारा / नरेन्द्र शर्मा
छोड़ मेरी हृदय-कारा, बह चली यह मुक्त धारा!
दौड़ता पीछे किनारा, बह चली यह मुक्त धारा!
मैं स्वयं पथ रोक हारा, रोक हारा लोभ सारा;
दिशायें हँस हँस बुलातीं, बुलाती नभ बीच तारा;
किन्तु पीछे छोड़ सब को, बह चली यह मुक्त धारा!
छोड़ मेरी हृदय-कारा, बह चली यह मुक्त धारा!
ध्येय अब तो और ही कुछ, गेय अब तो और ही कुछ,
मत बुलाओ पास कोई, प्रेय अब तो और ही कुछ!
अंक में भरने अवनि-नभ बढ़ी मेरी मुक्त धारा!
छोड़ मेरी हृदय-कारा, बह चली यह मुक्त धारा!
हृदय भी संकीर्ण-सा था, विश्व जर्जर जीर्ण-सा था,
दृगों की खिलवाड़ वाला व्योम, अंचल शीर्ण-सा था!
दृष्टि बदली, विश्व बदला, और चल दी मुक्त धारा!
छोड़ मेरी हृदय-कारा, बह चली यह मुक्त धारा!
यह न रोके से रुकेगी, जिधर चाहेगी झुकेगी,
घाव-से भरते अभावों में न भीषण दब फुकेगी,
एक घर-बाहर करेगी, बहेगी यह मुक्त धारा!
छोड़ मेरी हृदय-कारा, बह चली यह मुक्त धारा!