भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुखा़तिब हो मुकाबिल नहीं होती / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
मुखा़तिब हो मुकाबिल नहीं होती,
दिल की मुश्किल आम नहीं होती।
किससे क्या कहें कि दिल कुछ हल्का हो
उफ़ ये उम्र अब क्यों तमाम नहीं होती।
बडे़ खु़लूस से चला था कारवाँ उसकी तरफ़
ये और बात है कि सभी मंज़िले मुकाम नहीं होती।
इसी जुस्तजू में ज़िन्दगी मुक्कमिल हुई "शम्स"
कि एक उम्मीद के बाद उम्मीद हराम नहीं होती।
रचनाकाल: 15.07.2002